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Showing posts from April, 2020
पर्दा हटा रखना।
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पलकें भिगो कर सींचा है हमने हो सके वतन को हरा भरा रखना। वर्षा नहीं सकते हो दो फूल मुझ पर पत्थर फेंकने से खुद को बचा रखना। बीच की दूरियों को इतना सज़ा रखना हो सके हथेलियों को सफा-सफा रखना शौक नहीं लाठियां भांजने का मुझे हो सके पलकों से पर्दा हटा रखना। न दे सको दान एक फूटी कौड़ी भी राष्ट्र हित में तिज़ोरी खुला रखना। 'दरिया'
बस अकेला रहा।
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तन्हाइयों का लगा ऐसा मेला रहा मैं जहां भी गया बस अकेला रहा। शक थी तो बस अपनी काबिलियत पर मैं ईमानदार गुरु का भ्रस्ट चेला रहा। लोगों ने चाहा भी तो कुछ इस कदर व्यहार अपनों का भी सौतेला रहा। ख़ौफ़ खंजरों से कभी खाया नहीं हमने रूप प्यार का ही जहरीला सपेला रहा। सेहत सुधरे भी तो कैसे सनम का फलों में खाता ही सिर्फ़ केला रहा। गर चाहती खुशियां पास आने को कभी खुदा मारता गमों का बस ढेला रहा।