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Showing posts from October, 2019

किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

वक्त।

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दर किनार कर देना ये खुदा जब दरबार तेरे  मैं आऊंगा इंतजार कर ले उस दिन का ऐसा वक्त मैं ठुकरा जाऊंगा। मानवता नंगी हो गयी खुदा तेरे इस बनावटी बाजार में तिल-तिल मरता हूँ मैं खुदा देख बच्चियों को अत्याचार में।

व्रत करवाचौथ का रह जाती है।

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आंशु मोती बनकर बरस जाती है कलम उठते,याद तुमारी आती है। अभी तक शादी नहीं कि उसने व्रत करवाचौथ का रह जाती है। प्यार में सब कुछ जायज है 'दरिया' वक्त परे पत्ती फूल बन जाती है। सांसों में थकान सी होने लगती है माशूका, नजरों से दूर हो जाती है।

बस यही हर बार पूंछती थी।

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बस  यही  हर  बार  पूंछती  थी जो लिखते हो कहानी किसकी है। करते  मुहब्बत  मुझसे  हो  फिर अंगूठी    निशानी  किसकी     है। दवा  भी  तुम दुआ भी तुम फिर छटपटाती    जवानी  किसकी  है। याद   नहीं   करते     हो   फिर फ़िज़ा   में  रवानी  किसकी   है। अब मीडिया भी अपने हाथ में है हस्ती बनानी, मिटानी किसकी है। बजबजाती नालियों से जान लो गाँव    में  प्रधानी   किसकी   है।

मेरे पास चली आना।

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तुम  धन   से  न  सही और  तन  से  न  सही मन   से   चली  आना कभी  दिल  धड़के तो मेरे  पास  चली आना। एक    दिन    न    सही, एक     रात    न    सही बस  दो  पल   के  लिए मेरे  पास  चली  आना। अंदर  चलता  द्वंद  मिले दरवाज़ा  भी  बंद  मिले खिड़की  के   ही  सहारे मेरे  पास   चली  आना। ऊब  जाना  रिश्तों  से  तुम छोड़  घरबार  चली  आना इंतजार   रहेगा    ता    उम्र बस  इक  बार चली आना। सुखों   की   जरूरत   हो बेशक   तुम   मत   आना खुशियों  की  जरूरत  हो मेरे   पास   चली   आना। अरसे      बीत     गए तुझसे   मिले        हुये पटाका बन दीवाली में इस  बार   चली   आना।                'दरिया'

जी चाहता है, जी भर के देखूं उसे।

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बेशुध    हवा  को   बवंडर   बना  देना हो सके ,  'दरिया'  समंदर  बना  देना। भ्रस्ट  रोग   ने    खोखला    कर दिया हो सके, फौलादी  अंदर   से बना देना। जी  चाहता है, जी   भर  के  देखूं उसे हो सके, मूरत  मेरे  अंदर  बना   देना। मेरी  रूह  का  खज़ाना  बस  वही  है हो सके, सौ  ताले  के अंदर छुपा देना। लग जाये न कहीं उसको नजर भी मेरी हो सके, माथे  पे टीका सुंदर लगा देना। जब  वक्त  तेरा हो, ध्यान से सुनो दरिया हो सके,किनारों को भी अंदर समा लेना। चाह  कर  भी नहीं रोंक पाता हूँ खुद को हो सके,मोहब्बत-ए-तरफ़ा का अंतर बता देना। जख़्मी दिल, किसी का नही होता 'दरिया' हो सके, सहारा  देकर  अंदर  बुला लेना।

हम उस देश के वासी हैं।

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जहां    पेशाब    करना    मना   है वहीं    करते   मूत्र    निकासी    हैं हम     उस    देश    के    वासी  हैं। गरीबी  से  तड़पता  बचपन   जहां चुपड़  के  मिलती   रोटी  बासी  है हम  उस    देश    के   वासी    हैं। खिलाफ़ भ्र्ष्टाचार के आंदोलन होता लिप्त  अधिकारी   और  चपरासी हैं हम    उस    देश    के    वासी   हैं। कट्टा  दौलत  पर  राजनीति   टिकी शामिल  भै या   बबुआ   चाची    हैं हम    उस    देश    के    वासी    हैं। नशेड़ी   'कबीर खान'   तांडव करती सुपर 30   जैसी  फ्लॉप  हो जाती है हम      उस    देश   के     वासी    हैं। मानवता      जहां      चरण     चूमती दिन   दहाड़े  इज़्ज़त  लुट  जाती   है हम     उस    देश    के     वासी    हैं। किस्मत    महलों    में     राज  करती जहां   टैलेंट    हालात    की   दासी है हम      उस     देश   के    वासी     हैं। विकास  के  नाम  पे  चीर  हरण होता जहां   घर  की  तुलसी   कट  जाती है हम      उस     देश   के    वासी     हैं। अपराधी     जहां       खुल्ला     घूमते बेकसूर     चढ़    जाते      फांसी    हैं हम    उस      दे

तड़पी मैं, रात खुद से हुयी।

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जब  भी  बात  तुझ  से  हुयी तड़पी  मैं, रात  खुद  से  हुयी। जब  भी  घन  धरा  की  हुयी रोयी  मैं, बारिस  खुद से हुयी। जब  भी  जवानी  प्रेम में हुयी रही  मैं, कहानी  खुद  से हुयी। जब   भी   छुआ   उसने  मुझे भड़की   मैं, पानी  पानी  हुयी। जब  भी नयनों में लड़ाई हुयी जीत  गयी  मैं, हारी हारी हुयी।