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Showing posts from March, 2020

किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

आस्तीन सांप की।

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उनको हो जाने दो राख की जो परवाह न करे आपकी। यकीं मानो , मिट गया है ओ जिसने सुनी न माँ बाप की। बात मानों तुम पाल लो नाग को पर न पालो आस्तीन सांप की। कर लो कुछ सद्कर्म भी प्यारे वर्ना असर न करेगी हरि जाप की बस चाह लो एक बार जो सनम मिट जाएंगी दूरियां दिलों के नाप की। मिल जाये जिंदगी उसे भी बच्चा गोद ले लो किसी अनाथ की। 'दरिया'

अदभुत नज़ारा।

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मैं तो बस यूं ही बालकनी में खड़ा था लेकिन अचानक से मेरी नजर जब उस तरफ गई तो मैं चौंकन्ना स रह गया ओ अदभुत नजारा जो मैं शायद पहली बार देख रहा था ओ भी इतना करीब से ।ओ मूड बना रहा था या बना रही थी यह तो मैं ठीक से कन्फर्म नहीं हूँ लेकिन एक एक स्टेप जो एक एक करके खोल रहा था और उससे बनने वाली ओ छबि क्या कहना जिसे भगवान ने इतना सारा कुछ दिया हो उसको फिर किस चीज़ की कमी हो सकती है भला।अपनी मस्ती में झूम झूम कर प्रकृत के भविष्य का वर्णन जिस तरह कर रहा था कोई कवि या लेखक क्या खाक ऐसा कर सकता है और जो एक बार घूम जाता तो पूरा मौसम झूम उठता ये कोई कहने वाली बात नही है इसका जीता - जागता उदाहरण है कि शाम को means अभी खूबसूरत रिम - झिम बारिस धरा के बदन को भिगो रही थी। मौसम का यह पूर्वानुमान शायद इससे बेहतर कोई लगा सकता हो अगर हम गूगल और विज्ञान की बात न करें तो। एक मोर जो जुल्फ रूपी अपने पंख को जिस मस्ती में लहराता और नाच रहा था देख के मेरा ही नहीं बल्कि वहाँ मौजूद सभी लोग मूरीद हो गए। टक - टकी लगा के सब बस उसे ही देख रहे थे जो खुले दिल से मौसम को न्योता दे रहा था। यह वही मोर है साहब जिसे भारत सरक

Happy होली।

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दिलों में रंगत नई है आई खुशियों की सौगात ले आई आओ मिलकर मनाते है सब त्योहार रंगों की जो आई होली की हार्दिक बधाई। न मिलने का कोई मलाल रहे बस चेहरा खुशी से लाल रहे हम मस्ती में खूब झूमते रहें चारों तरफ बस गुलाल रहे। न दिलों में अब बवाल रहे न आंखें किसी पर लाल रहें इस तरह घुल मिल कर रहें हम जैसे रंगों में मिलकर गुलाल रहे।        'दरिया'

जो खास है ओ यूं ही आम नहीं होता।

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जो खास है ओ यूं ही आम नहीं होता दिल में जगह बना पाना आसान नहीं होता। आना जाना तो रश्म-ए-रिवाज़ है प्यारे दिल को घर बना पाना आसान नहीं होता। एक चेहरा जो नजरों से ओझल होता नहीं चेहरे पे खुद को मिटा पाना आसान नही होता। 'दरिया'

यादों के संग - संग।

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लट छितरे बिखरे से परे  हैं जैसे सागर साहिल से लरे हैं नाक पे पड़े हैं नथिया बनकर बालों में सजे हैं गजरा बनकर चंचल सी यह पवन चली है जैसे दरिया खुशबू की बही है कंचन सी यह देह तुम्हारी केशु से अंग सजे सवंरे हैं मोती से आज नहायी हुई हो  य लिप्टिस के सारे फूल झरे हैं ।।        "दरिया"

मुझे तो होश ही न रही।

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जब पलकों के शिल शिले होते है साहब तब होठ खुद ब खुद सिले होते हैं सादगी की तो अपनी खासियत है साहब बिन बोले हर किसी से मिले होते हैं। हर बार खूबसूरती पे तो शायरी मुमकिन नहीं साहब पर बिन चांद-ए-दीदार के भी शायरी मुमकिन नहीं साहब। मयखानों की लत होगी ओ और होंगे मेरे बाद मुझे तो होश ही न रही हुस्न- ए-दीदार के बाद।