बस अकेला रहा।

तन्हाइयों  का  लगा  ऐसा  मेला  रहा
मैं  जहां  भी  गया  बस  अकेला रहा।

शक थी तो बस अपनी काबिलियत पर
मैं  ईमानदार  गुरु  का  भ्रस्ट चेला रहा।

लोगों ने  चाहा  भी  तो कुछ इस कदर
व्यहार  अपनों  का  भी  सौतेला  रहा।

ख़ौफ़ खंजरों से कभी खाया नहीं हमने
रूप प्यार का ही जहरीला सपेला रहा।

सेहत  सुधरे  भी  तो  कैसे  सनम का
फलों  में  खाता  ही  सिर्फ़ केला रहा।

गर चाहती खुशियां पास आने को कभी
खुदा   मारता   गमों का बस ढेला रहा।

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