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Showing posts from September, 2019

किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

पहली मोहब्बत।

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पहली मोहब्बत नयनों  का  पहली  बार  मिलना फिर     मिलकर         बिछड़ना हथेलियों  का  बालों  में मचलना जुल्फों   का  खुद  से  बिखरना।                  आसान नहीं होता। साथ  मे   धीरे  -   धीरे    चलना फिर   चुपके    से   छुप    जाना अचानक    से   सामने    आकर फिर    गले   से   लिपट   जाना।                  आसान नहीं होता। जाते  -  जाते  बाय  कर  जाना Byke  कैम्पस  में  भूूूल जाना रात   भर  बाय  को  गुनगुनाना सुबह  इंतजार  में  लग  जाना।                 आसान नहीं होता। पंखुड़ियों को पकड़ कर हिलाना छत की बालकनी में चढ़ जाना नीम के नीचे बैठ कर बतियाना फिर धीरे से तेरा आंख मार जाना                  आसान नहीं होता। उंगलियों को टेक्निकल बनाना हाथों में मेहंदी लगा कर आना उंगलियां पकड़ते ही चिल्लाना कोने में इंतजार का दिया जलाना।                   आसान नहीं होता।

शबनमी ओंठ अंगारे बरसाने लगे।

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छुप - छुप  कर  बतियाता  ही   रहता   हूँ  मैं लगता  है  बगावत  पे   उतर   आया  हूँ   मैं। मेरे   कर्मो     का   आईना   देखो     'दरिया' अपने  ही  विनाश   पर   उतर   आया  हूँ  मैं। नजदीकियां  बढ़ी  थी  विषम   परिस्थिति  में हालात  बदलते , औकात में उतर आया हूँ मैं। सम्भाल   कैसे     पाओगे    ए -   ख़ुदा  हमें जब  गिरने  पे   ही    उतर    आया    हूँ   मैं। हो   सकता  है  कचहरी    लग    जाये  कल खिलाफ़    लिखने  पे   जो  उतर  आया हूँ मैं। अब  तो   तरक्की   ही  पक्की    है    साहब जब    चाटुकारिता  पे  उतर  आया    हूँ  मैं। अब    क्या     न्याय    और    क्या     सज़ा जब    रिस्वत     पे    उतर     आया     हूँ  मैं। तुम   क्या  समझाओगे  दो   दिन   की  पदनी जब   नीचता   पे   ही   उतर   आया  हूँ    मैं। करेंगी     क्या   अब   तेज़       हवाएं   मेरा तूफानों      से      गुज़र    आया    हूँ     मैं। दिखाती     रहें   औकात  अपनी  भी  लहरें 'दरिया'    किनारे  पे  उतर   आया   हूँ    मैं। शबनमी   ओंठ      अंगारे    बरसाने    लगे उनकी      नजरों     से  उ

तंग कपड़ों पर तंज राखी देती है।

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सुन  कर  अच्छा  लगता  है  जब तंग कपड़ों पर तंज राखी देती है। यूं तो  समय से  संभाल  लिया ट्रैफिक घटना के बाद ही जवाब खाकी देती है। मज़ा तो हई है बरसात में बारात का चावल  संग  स्वाद  पांखी  देती  है। कितना   भी   पुराना   हो   जख्म मिटा  हर   ग़म  साकी   देती   है। लद  गया  जमाना  मेजर  साहब  का अब  कहां  विस्व  कप  हाकी  देती है।

हिंदी से हिन्दू- हिंदुस्तान है।

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सुबह  भी  तुझसे  होती तुझ संग गुजरती शाम है हे   मेरी    मातृ    जननी तुझे  शत - शत प्रणाम है। सांसों   में   है   तू   बसी तुझ   संग   ही  जुबान है यूं   ही   तू   फूले -  फले तुझ  में  ही  हिंदुस्तान है। तेरी   उपस्थिति   से   ही मेरी लेखनी का सम्मान है मिसाल  दूं  क्या  मैं  जब तू ही विधा की चटटान है। लिख  गये  भारतेन्दु  जी शुक्ल  जी का भी मान है नारा   इतिहास  का   यही हिंदी से  हिन्दू-हिंदुस्तान है।

एक घटना जिसने देश को झकझोर का रख दिया था।

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ओडिशा के एक अस्पताल की ह्रदयविदारक घटना जिसमें दीनू मांझी नामक आदिवासी की पत्नीक tv के कारण मृत्यू हो जाती है और वह अपनी पत्नी को कंधों पर उठाकर चल देता है और 12 km तक जाता है,इसके बाद ही उसको एम्बुलेंस मुहैया करायी जाती है जो हमारे देश की अव्यवस्था का आईना पेश करती है।जिस घटना ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया। ओ  लाश  नहीं  आखिरी  आस  थी लाचार व्यवस्था की जिंदा अहसास थी मजबूत  कंधे  की  ओ कहानी है कांपते  मेरे  रूह  की  जवानी  है हर  सख्स  के लवों की आवाज़ है सरेआम  मरती इंसानियत आज है बहुतों  ने  देखा बहुतों ने सोंचा होगा हर किसी ने व्यवस्था को कोसा होगा तस्वीर देख कर होंगे हम जिंदा नहीं इस पर इंसानियत होती शर्मिंदा नहीं फुट -फुट कर रोया किया कितना गिला होगा जनाजा लेकर जब  प्रियतम  का  चला होगा। कितनी भयावह दुःखद रही ओ घड़ी होगी जब शौहर के कंधे पर चली पगडंडी होगी। यह तस्वीर क्या  बताने के  लिए काफी नहीं कि हम ज़मीर बेंचने में करते न इंसाफी नहीं आदि  से  अनन्त  तक  का  वासी है सच  में  दीनू  एक  आदिवासी  है।

पत्ता कट गया तो क्या हुआ।।

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दबा ली न उंगलियां दांतों तले कट गया तो क्या हुआ।। पहन कर नहीं चले थे हेलमेट चालान कट गया तो क्या हुआ।। कहे थे कि न लड़ाओ पतंग डोर कट गया तो क्या हुआ।। कहा था इसरो विक्रम साथ रहना संपर्क कट गया तो क्या हुआ।। त्योहार था अपना बकरीद का बकरा कट गया तो क्या हुआ।। उम्र तड़प उठी जब जाने को टिकट कट गया तो क्या हुआ।। निभा ली न सारी जिम्मेदारियां चढा फट गया तो क्या हुआ।। फॉल इन लव में मज़ा तो आया जेब कट गया तो क्या हुआ।। माल ही जब गलत बना दिया पगार कट गया तो क्या हुआ।। जवान बीबी को छोड़ प्रदेश गये पत्ता कट गया तो क्या हुआ।।

वरना रख्खा ही क्या है इश्क के फसाने में।

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हार   गया   हूँ  मैं  खुद   को   समझाने में वरना रख्खा ही क्या है इश्क के फसाने में। तलब सी हो गयी है मुझे तेरे इस चेहरे से वरना  हजारों   मरती  हैं   इस  जमाने में। मुझे   यूं  ही  मोहब्बत   नहीं  हुयी  तुमसे कोशिश तुमने भी की है दिल को सजाने में।

ऐसा मंजर हो गया था।

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तुम सोंच नहीं सकते दरिया कि ओ  कितना  करीब  हो    गया पैंतरे ही ऐसे लगाता था ओ कि उसका सफल तरक़ीब हो गया । था चार दिनों का अनुभव मात्र चालीस  दिनों  को  मात  देता कुछ इस कदर संभाला उसने कि हर विभाग का नसीब हो गया । रख  सकते  हो  कब  तक  दरिया तुम  गुमराह   करके   किसी  को तेरे   काम  का लहज़ा बता रहा था जाने का वक्त कितना करीब हो गया उसके  प्रवेश  मात्र   से   ही ऐसा   मंजर  हो  गया    था हर किसी के लिये हर कोई चुभता  खंजर  हो  गया था। माना  कि   तुम  कहना चाहते हो किसी  की   चुगली नहीं कि उसने सच्चाई  ये  है   कि कोई बचा नहीं जिसके पीछे उंगली नहीं कि उसने यूं   तो  छा  गये  थे   गुरु आसमां में बादल की तरह पर  बहते  देर   न  लगी आंसुओं संग काज़ल की तरह। ऐसा   कुछ  बचा   नहीं उसने   जो  किया न हो जगह   कोई  बची   नहीं जलाया जहां दिया न हो। क्या  कुछ  नहीं किया उसने बस  छोड़कर  काम  अपना बताया  है खुद को उनके संग बस  जोड़कर  नाम   अपना। काम करने के तरीके और लगन ने उसे   पलकों   पे    बिठा   दिया पता    ही    नहीं     चला     कब गिराने व

नयना तुम्हारे।

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टूट  कर  बिखरने   लगता हूँ संभालते   हैं  कंगना  तुम्हारे पी लून  मैं  कितना भी सनम प्यास बुझाते हैं नयना तुम्हारे। रूठ    कर  चल    देता     हूँ बुला  लेते  हैं अरमां  तुम्हारे गिर जांऊ किसी की नजर में उठा  लेते   हैं  नयना   तुम्हारे। सागर   की   बात  क्या  करूँ 'दरिया'  हैं   सावन  के सहारे डूबी  नहीं   हैं  कस्तियां  वहां जहां  केंवट  हों नयना तुम्हारे। यूं  तो  भंवरे   होँसियार बहुत हैं चूस लिए हैं रस यौवन के सारे पर   बच   न सके आज तलक तीर चलाये हों जब नयना तुम्हारे।

बेसुरा हो गया ।

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अच्छा अच्छा कहते कहते बुरा हो गया चाहत थी रफी बनने की बेसुरा हो गया सच्चा सच्चा बनते बनते झूठा हो गया भरी जवानी में मैं तो बूढ़ा हो गया। सीधा सीधा रहते रहते टेढ़ा हो गया ग़ालिब तेरी नजरों में ऐड़ा हो गया।

Happy Teacher's Day.

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महकती धरती जिसके दम पर और जगमाता आसमान है चुनी  यह  राह  है  जिसने उनको सौ-सौ बार प्रणाम है मौजूद   हजार   राहें   हैं यूं तो जीवन निर्वाह खातिर फिर भी  उठा लिया वीड़ा समाज के उत्थान खातिर। दम घुटता है जब संस्कारों का बनकर  प्रचार  आता  है  गुरु बेशक   कभी   लौ  नहीं बनता मगर तेल का क़िरदार निभाता है गुरु। पेंड़  बनकर  खड़ा  नहीं  होता मगर बीज का पोषण करता है गुरु जाता  नहीं  चल  कर   कहीं मगर हर राह दिखा देता है गुरु। बुझते दीपक में तेल बनकर डूबते जीवन में मेल बनकर भटके  राही  के  जीवन  मे चलती ट्रेन बनकर आते हैं गुरु सभ्यता को संभाल कर रखना संस्कारों  को  जीवित  रखना मचलते  फूल  से  बच्चों  को बनाकर   इन्शान   रखना                 आसान नहीं होता।