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Showing posts from June, 2020
लाजबाब हो तुम।
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मेरे इश्क की आखिरी किताब हो तुम लाजवाब से भी ज्यादा लाजवाब हो तुम। मालूम, तारीफ़ सुनने को बेताब हो तुम मेरी शायरी के हर शब्द का ख्वाब हो तुम। झकझोर देगी तुम्हे ये खामोसी भी मेरी मेरे बेचैन सवालों का भी जवाब हो तुम। उतार लूँ चांद को जमीं पे गर कहो तुम मेरे दिल पर हुकूमत-ए- नवाब हो तुम। लौट भी आओ कि दिल बहुत उदास है 'दरिया' की रोजी रोटी का हिंसाब हो तुम। "दरिया"
मुझे इश्क हो गया।
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तेरे लंबे - लंबे बालों से और सुर्ख गुलाबी गालों से मुझे इश्क हो गया। होंठों की कचनारों से और हिरनी सी चालों से मुझे इश्क हो गया। तेरे जुल्फों की घटाओं से और नयनों की मटकाओं से मुझे इश्क हो गया। तेरे व्यभिचारिणी हालातों से और संग में पीते - खातों से मुझे इश्क हो गया। ग्रीन टी के प्यालों से नाभी और कपालों से मुझे इश्क हो गया। तेरे संग चांदनी रातों से और मीठी - मीठी बातों से मुझे इश्क हो गया। तेरे बदलते अंदाज़ों से नये - नये आगज़ों से मुझे इश्क हो गया। तेरे टूटते होंसलों से बढ़ते गलत फैंसलों से मुझे इश्क हो गया। "दरिया"
पर्यवारण हमारा है।
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हवा का सहारा है नदिया का किनारा है सच पूछो तो ये पर्यावरण हमारा है। पहाड़ों को तोड़ कर धाराओं को मोड़ कर जो हुनर हमने दिखया है परिणाम है उसी का आज, बच्चा - बच्चा बेसहारा है। ज़हर घोला है हमने नाला नदियों में खोला है हमने विज्ञान पढ़ पढ़ कर रसायनों का अविष्कार किया हमने परिणाम उसी का है हर इंशान आज बेचारा है। काश दादा की बात माने होते एक पौधा अपने हिस्से में लगाये होते कोने कोने में आज हरियाली होती समृद्धिवान ये पर्यावरण हमारा होता।