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Showing posts from June, 2021
समय से पहले जवान हुयी मैं।
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समय से पहले जवान हुयी मैं अपनी गलियों में बदनाम हुयी मैं। न चल सका पता घर वालों को अपने मुहल्लों में सयान हयी मैं। छुप कर ही चली हर नजर से मैं पर नजरों से ही परेशान हुयी मैं। लेकर तालीम सदा ही चली में फिर भी अंधेरों में हैरान हुयी मैं। पकड़ कर हाथ उस पार चली मैं रह गयी बस कटी हुयी मयान मैं। दर्द छलका जब तेरे आगे दरिया समाज में राजनीतिक बयान हुयी मैं।
बता तेरी कौन हूँ मैं।
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रगों में बहने वाले, लवों से पूछते हैं बता तेरी कौन हूँ मैं सुनकर तेरे सवालों को होता जा रहा अब तो मौन हूँ मैं। ओ वक्त भी क्या वक्त था जब मैं उसका था अब तो रह गया पौन हूँ मैं। रंग भरकर जिंदगी बे रंग करने वाले देख अब भी जॉन हूँ मैं। लेकर भूल जाने का हुनर तुझमें है बेवक्त सताऊंगा, बैंक का लोन हूँ मैं। कितनी मिन्नतें की थी तुझे पाने के खातिर आज भी किया हौंन हूँ मैं।
मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं।
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मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं अपनों के लिये ही ज़हर हो जाऊंगा मैं ओढ़ लूंगा मैं अय्याशियों के लिबास फिर फ़ैशन का शहर हो जाऊंगा मैं। दिन ब दिन दूषित होता जा रहा हूं लगता है नाला - नहर हो जाऊंगा मैं। उमस भर गयी रिश्तों में इतनी कि लगता है जून के दोपहर हो जाऊंगा मैं। मेरे किरदार में ओ चमक न रही कि बनकर तिरंगा फहर जाऊंगा मैं। आवाज़ कितनी भी आये मन्दिर-ओ-मस्जिद से लगता है कि अब बहर हो जाऊंगा मैं।