मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं।


 

मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं

अपनों के लिये ही ज़हर हो जाऊंगा मैं


ओढ़  लूंगा  मैं अय्याशियों के लिबास

फिर  फ़ैशन  का  शहर हो जाऊंगा मैं।


दिन  ब  दिन  दूषित होता जा रहा हूं

लगता  है  नाला - नहर हो जाऊंगा मैं।


उमस  भर  गयी  रिश्तों  में  इतनी कि

लगता है जून के दोपहर हो जाऊंगा मैं।


मेरे   किरदार  में   ओ चमक  न  रही

कि  बनकर  तिरंगा  फहर  जाऊंगा  मैं।


आवाज़ कितनी भी आये मन्दिर-ओ-मस्जिद से

लगता   है   कि   अब   बहर  हो   जाऊंगा   मैं।


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