असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं।


 

मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं

अपनों के लिये ही ज़हर हो जाऊंगा मैं


ओढ़  लूंगा  मैं अय्याशियों के लिबास

फिर  फ़ैशन  का  शहर हो जाऊंगा मैं।


दिन  ब  दिन  दूषित होता जा रहा हूं

लगता  है  नाला - नहर हो जाऊंगा मैं।


उमस  भर  गयी  रिश्तों  में  इतनी कि

लगता है जून के दोपहर हो जाऊंगा मैं।


मेरे   किरदार  में   ओ चमक  न  रही

कि  बनकर  तिरंगा  फहर  जाऊंगा  मैं।


आवाज़ कितनी भी आये मन्दिर-ओ-मस्जिद से

लगता   है   कि   अब   बहर  हो   जाऊंगा   मैं।


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