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Showing posts from February, 2022
बस रोने को ही जी चाहता है।
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बस रोने को ही जी चाहता है जाने क्या खोने को जी चाहता है। बचा नही कुछ भी अब मेरा जाने किसका होने को जी चाहता है। लिपट कर रोती है ये रात भी रात भर जाने किसके संग सोने को जी चाहता है। दौलत खूब कमाया उदासी और तन्हाई भी जाने किस खजाने को जी चाहता है। इर्ष्या द्वेष कलह फ़सल सारी तैयार है जाने कौन सा बीज बोने को जी चाहता है। ओढ़ ली कफ़न खुद से रूबरू होकर जाने कौन सी चादर ओढ़ने को जी चाहता है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
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जो अमृत है ओ ज़हर कैसे हो तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो। ख़्वाबों के अपने सलीक़े अलग हैं उजालों में इनका असर कैसे हो। इंसानियत प्रकृति की गोद में हो वहां कुदरत का कहर कैसे हो। घरों की पहचान बाप के नाम से हो वह जगह कोई शहर कैसे हो। पीने के योग्य भी न रह गया हो वह जल स्रोत कोई नहर कैसे हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल गया हो दिन हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।
Happy kiss day.
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अच्छे को अच्छा, बुरे को बुरा कौन कहेगा चा पलूसी के जहां में अब खरा कौन कहेगा। हथेली चूम मोहब्बत -ए- इबारत लिखते थे हवस के दौर में बसंत को हरा कौन कहेगा। सतरंगी जीवन में मरने के तरीके बहुत हैं इश्क में मरने को अब मरा कौन कहेगा। बदन की भूख में पलने वाले इश्क का दौर है माथा चूम के,शब्द ,प्यार से भरा,कौन कहेगा। दिखावा ने असल दुनिया से बेदख़ल कर दिया अब फीके पकवान को सरा कौन कहेगा। थोड़े में लिबास ज्यादा ओढ़ने का रस्म है साहब अब ज्यादा हैसियत को ज़रा कौन कहेगा।