असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

बस रोने को ही जी चाहता है।


 

बस  रोने  को   ही   जी   चाहता  है

जाने  क्या खोने  को  जी  चाहता है। 


बचा   नही   कुछ    भी    अब   मेरा

जाने किसका होने को जी चाहता है। 


लिपट  कर  रोती  है  ये रात भी रात भर

जाने किसके संग सोने को जी चाहता है। 


दौलत खूब कमाया उदासी और तन्हाई भी

जाने  किस   खजाने  को   जी  चाहता  है। 


इर्ष्या  द्वेष  कलह  फ़सल  सारी  तैयार  है

जाने कौन सा बीज बोने को जी चाहता है। 


ओढ़  ली   कफ़न   खुद   से   रूबरू   होकर

जाने कौन सी चादर ओढ़ने को जी चाहता है।

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