असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे
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कूकती कोयल में तुम हो।
नैनो के काजल में तुम हो।
माँ के आँचल में तुम हो।
धड़कते सीने में तुम हो।
महकती साँसों में तुम हो।
मेरे खवाबो में तूम हो।
मेरी बातो में तुम हो।
मेरी जजबातों में तुम हो।
जो तुम हो तो दुनिया है।
नहीं,
रेगिस्तान है दुनिया।
मेरी समसान है दुनिया।
अहंकार है दुनिया।
मेरी अंधकार है दुनिया।
विस्वास्घात है दुनिया।।
दिल में आघात है दुनिया।
जब तुम नही हो तो।
मेरे किस्काम की दुनिया।
रामानुज 'दरिया'
रे भैया के सरहद पे जाइ
रे भैया के::::::::;;;;;::::::
भ्र्स्ट तंत्र अब करे तांडव
दहेज़ रहे है लुभाई
शिशक शिशक के बिटिया रोये
अब के हमका पढ़ाई ।
रे भैया के :::::::;;;;;;;:::::::::::;;
चैन की निंदिया जौ हम सोई
सेना की देन है भाई
कुछ तो नेता निचे गिरिगे
रहें सेना पर ब्लेम लगाई
रे भैया::::::::::::::;:;;;;::
चीख चीख के धरती रोये
एम्बर फ़टी फ़टी जाई
पेट पकड़ के मई जी रौये
अब के लाज़ बचाई।
रे भैया::::::::::
रामानुज दरिया
धिक्कारता यह जीवन है दरिया का
जो खुद की पहचान न बना सका।
रास्ते बहुत दिखाए लोगों को
न खुद को चलना सीखा सका।
मुकम्मल जिंदगी में न कोई कमी रही
आरजू-ए-आशिकी में न प्यार प् सका।
गमों की खिड़कियां खुली थी
मैं महफ़िलों को हंसाता रह गया।
किस्मत ने ऐसी सेंध मारी
न हंस सकी कभी जिंदगी हमारी।
खुदा की ऐसी रहमतन बरसी
खामोस जुबां भी बोल उठी।
सिखाते रह गए हम दूसरों को
न खुद को बोलना सीखा सका।
रामानुज 'दरिया'
याद है मुझे आज भी इठलाना तेरा
साथ चलकर पीछे लौट जाना तेरा
हर पल रुलाती है ओ दिलकश अदायें
नजरें मिलाके पलकें गिराना तेरा ।।
कितनी मस्ती थी उन बातों में
जब रहते थे हम साथों में
सताती है मुझे ओ उत्तर की खुमारी
रहने को दी थी फॉरएवर की सवारी
मुझे याद है ओ गुजरा जमाना
जब खेले थे हम दिल का लगाना
आ न सकी तुम अरमान बनकर
जिंदगी रह गयी बस वीरान बनकर।।
"दरिया"
तू ही बता मै तुझे ज्यादा या कम लिख दूं
आने की ख़ुशी या जाने का गम लिख दूँ।
लिखने को तो मैं ये सारा जहां लिख दूं
पर बगैर तेरे मैं खुद का वजूद कहां लिख दूं।
मेरे दिल के आईने में झांक ले तस्वीर अपनी
इससे बढ़कर मै कौन सी जागीर लिख दूं।
ना कुछ पास बचा जिंदगी की हाजिरी में
सोंचता हूँ साँसों का सफर आखिरी लिख दूं।
" दरिया "
गलती से भी गलत हुआ हो
न चाह कर भी पाप हुआ हो
इस बार इसे धोकर आएं
चलो हम गंगा नहाएं।।
हवाएँ जाल बिछाएं
ठंढियां फुरसत में आएं
चाह कर भी ये रोंक न पाएं
कुछ ऐसा हम मूड बनाएं
चलो हम गंगा नहाएं।।
रामानुज 'दरिया'