कहा था लौट कर आऊंगा मैं।।


सूखे सागर को बूंद दे जाऊंगा
ख़्वाब को हकीक़त बनाऊंगा मैं
ये ताज,काज और साज तरसेंगे
फ़लक तक की सैर कराऊंगा मैं
कहा था लौट कर आऊंगा मैं।।


चमन ख़ुशबू मांगेगा
आसमां धरती निहारेगा
फिजायें इतनी नशीली होंगी
मैखाना भी नयन सिधारेगा
खूबी ऐसी देकर जाऊंगा मैं
कहा था लौट कर आऊंगा मैं।।

थी अपनी भी चाहत हकीकत का नजारा हो
कदम निकले जो घर से सारा जमाना हमारा हो
मांगे ऑटोग्राफ तो खुद को भूल जाऊंगा मैं
कहा था लौट कर आऊंगा मैं।।

                     रामनुज 'दरिया"



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