उठ चल दो कदम चार
हरगिज़ तू न मान लेना हर
भर तू हौंसलों में उड़ान
जाना है तुझे गगन के पार
उठ चल
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वक्त भी तेरा होगा
और कायनात भी तेरी
ठान ले तू इस बार
पहन परिश्रम का हार |
उठ चल
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दूर मंजिल नहीं तुझसे
चूम ले सफलता का मुकाम
खा कसम खुद से इस बार
जाना है तुझे गगन के पार |
उठ चल
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उठा मेहनत का हथियार
बदल दे हर वक्त की मार
कोई बाँध टिक नहीं सकता
बन जा तू नदिया की धार |
उठ चल
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पहचान तू खुद को एक बार
जुनून ले दिल में उतार
हर शब्द तेरा quotation
होगा
रच नया इतिहास इस बार |
उठ चल दो
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रामानुज ‘दरिया ‘
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