ये रोशनी अब मेरे द्वार चल ||


ये रोशनी अब मेरे द्वार चल
अंधकार में डूबी है जिंदगी
थोड़ा उस पर भी विचार कर
ये रोशनी ................................
मेरे दिल में सुलगती उसकी यादें हैं
उस पर खड़ी अब दीवार कर |
ये रोशनी ....................................
कुछ तश्वीर आंशुओं से भिगोई है ,
कुछ जख्मों को दिल में संजोया है |
रोशनी अपना तेज प्रताप कर ,
जला कर इसको अब राख कर |
ऊब गया हूँ मै इस प्रेम जाल से ,
माया से अब मुक्ति के द्वार चल |
ये रोशनी..................................
           रामानुज ‘दरिया’

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