ये जिंदगी तुझसे अब आस नहीं कोई |

            ग़ज़ल
ये जिंदगी तुझसे,
अब आस नहीं कोई |
मेरे सर पे धूप रहने दे ,
न चहिये छांव अब कोई ||
सताने लगे हैं ,
ये उजाले भी मुझे |
अंधेरों में न रही ,
औकात अब कोई ||
ये जिंदगी .....................
नफ़रते हुश्न का जलवा तो देखो
टूट कर आइना भी कहता है
“ये मनहूस चेहरा” 
तुझे कितना बरदास करे कोई ||
ये जिंदगी ......................
          रामानुज “दरिया”

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