रूठ के यूं न जा, ये जिंदगी मेरी ||


           ग़ज़ल
रूठ के यूं न जा,  ये जिंदगी मेरी
जख्म बन जाएगी बस ये यादें तेरी |
तड़पना मेरी बस मुक्कदर में है ,
वरना बाँहों में होती मोहब्बत मेरी |
रूठ के यूं .............................
चाह के भी न होती कम ये चाहत मेरी,
न गुजरती है बिन तेरे ये रातें मेरी|
रूठ के यूं .................................
मैखानों की दुनिया से क्या वास्ता,
तेरे नैनों से बुझती है प्यासें मेरी |
रूठ के यूं ...............................
            रामानुज “दरिया”

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