होली की शुभकामनाएं।।
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कोई कहता तो कि हम हैं तुम्हारे
कर देता कुर्बान जिंदगी के सितारे
सीता बनकर तुम आओ तो सही
जंगल जंगल भटकते राम तुम्हारे
लत लगी हो जब मधुशाला की
फिर मतलब क्या ब्रांड की तुम्हारे
सफर किया हूँ मैं रूह तलक
करुँगा क्या बदन की तुम्हारे
उठाया है बोझ जिम्मेदारियों का
फिक्र नहीं वज़न की तुम्हारे
सुलगता रहे ज़िस्म बिरह में
करूं क्या बनकर सजन तुम्हारे
उड़ कर गए थे परिंदे चुगने
ढ़लते साम लौट आये वतन तुम्हारे।
कहना मत की इतला नहीं किया
मुहब्बत करती चरित्रता का हनन तुम्हारे।
बेशक गौर नहीं किया तुमने
हर पल करता हूँ मनन तुम्हारे।
विवस होकर भले ही रोता हूँ
'दरिया' बहती है नयन से तुम्हारे ।।
रामानुज 'दरिया'
होली की शुभकामनाएं।।
कर देता कुर्बान जिंदगी के सितारे
सीता बनकर तुम आओ तो सही
जंगल जंगल भटकते राम तुम्हारे
लत लगी हो जब मधुशाला की
फिर मतलब क्या ब्रांड की तुम्हारे
सफर किया हूँ मैं रूह तलक
करुँगा क्या बदन की तुम्हारे
उठाया है बोझ जिम्मेदारियों का
फिक्र नहीं वज़न की तुम्हारे
सुलगता रहे ज़िस्म बिरह में
करूं क्या बनकर सजन तुम्हारे
उड़ कर गए थे परिंदे चुगने
ढ़लते साम लौट आये वतन तुम्हारे।
कहना मत की इतला नहीं किया
मुहब्बत करती चरित्रता का हनन तुम्हारे।
बेशक गौर नहीं किया तुमने
हर पल करता हूँ मनन तुम्हारे।
विवस होकर भले ही रोता हूँ
'दरिया' बहती है नयन से तुम्हारे ।।
रामानुज 'दरिया'
होली की शुभकामनाएं।।
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किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
जो अमृत है ओ ज़हर कैसे हो तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो। ख़्वाबों के अपने सलीक़े अलग हैं उजालों में इनका असर कैसे हो। इंसानियत प्रकृति की गोद में हो वहां कुदरत का कहर कैसे हो। घरों की पहचान बाप के नाम से हो वह जगह कोई शहर कैसे हो। पीने के योग्य भी न रह गया हो वह जल स्रोत कोई नहर कैसे हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल गया हो दिन हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।
उनका भी इक ख्वाब हैं।
उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

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