कमजोरियों का करता शिकार था ओ ||


        
      




     गज़ल  
कमजोरियों का करता शिकार था ओ
सुना है कि बहुत समझदार था ओ

बिखेर देता फूल कदमों तले पहले
फिर करता काँटों से  वार था ओ

निश्छल ,निर्मल पावन था ओ
सुना है बड़ा मन भावन था ओ
ये सपनों के शब्द हैं  साहब
दिल से तो बड़ा मक्कार था ओ

शिकार को पहले शिकंजे में लेता
मौका पाते ही दबा पंजों में लेता
दिमाग का करता बलात्कार था ओ
सच में बड़ा मक्कार था ओ
                रामानुज “दरिया”

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