असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

ग़ज़ल गम


      

लिपटकर रात भर मेरे साथ सोता है
जाने क्यूं मेरे साथ ही ऐसा होता है |

उतार देता हूँ बदन से हर कपड़े अपने
पता चलता है ओ रूह में उतरा होता है |

जी चाहता है निकल फेंकू ये रूह भी अपनी
ध्यान गया तो देखा रोम –रोम में बसा होता है |

मेरा गम से इतना गहरा नाता है
आँख खुलती है तो कोहरा सा होता है |

                  रामानुज ‘दरिया’


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