मां
ये मां जब भी तेरी याद आती है
मेरा दिल तेरी आंचल में लिपट जाना
चाहती है
धूप में आंचल की छांव दी हो
सर्दियों में तन को पसारा हो
बारिस की बूँदें जिसे छू न सके
जतन भी किया कितना सारा हो
चरणों में जिंदगी ठिकाना चाहती है
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मेरा दिल .....................................
मेरी खुशियों से खुश हो जाती है
कितने दुखों से मुझको संभाला है
मेरी हर सांसों में बस तू रहे मां
सांसें भी तुझमें समा जाना चाहती
हैं |
मेरा दिल
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कभी लोरी सुनाती
कभी थपकियां देकर सुलाती
कभी आंचल में छुपाती
कभी मुझमें खुद खो जाती
उम्र भी गोदी में बिखर जाना चाहती
है |
मेरा दिल
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रामानुज ‘दरिया’
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