ख़्वाब मगरूर हो गया है।।

जबरदस्त था हौंसला पतंग का
पर डोर हाथ से छूट गया है।।

अपराध बढ़ गए जो इश्क की गलियों में
हुस्न इक-इक परिंदे को सूट कर गया है ।।

घबराकर न छोड़ देना तुम साथ कभी
अब टूट बेबसी का भी वज़ूद गया है ।।

सज़ा हो जाती, किये हर खता की
पर मिटा ओ सारे सबूत गया है ।।

आंखें सितारे ढूढ़ती हैं
पर ख़्वाब मगरूर हो गया है।।

लिपट कर सोता है रात भर
तकिया भी मज़बूर हो गया है।।

देखता भी नहीं है पलट कर मुझे
सुना है बहुत मशहूर हो गया है।।

दिखती नहीं 'दरिया' में ओ रवानी
सायद महीना मई जून हो गया है।।

मत पूछो यौवन कितना जवान है
छूकर देखो, रस से भरपूर हो गया है।।

पूंछा था, आख़िर क्यों दिया धोखा
कहती है,दुनिया का दस्तूर हो गया है।।

लेकर जाते हैं फ़रियाद चौखट पर
खुदा को, सब कहां मंजूर हो गया है।।

मोहब्बत इतनी बदनाम हो गयी
कि प्यार करना कसूर हो गया है।।

प्यार में तुम घबराओ नहीं 'दरिया'
उनकी बातें दिल का नासूर हो गया है।।

चाहता कौन नहीं पाना मंज़िल यहाँ
पर बेबसी में खटटा अंगूर हो गया है ।।

परहेज़ किसे है मख़मली बिस्तर से
नसीब में ही छांव, ख़जूर हो गया है ।।

तरक्की का आईना दिखे न दिखे
गरीब सड़क पर जरूर हो गया है ।।

रामानुज 'दरिया'








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