यादों के संग-संग ।।
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पुरानी बहुत बात है
कहानी की दिल से शुरुआत है।।
देखी थी मैंने एक तस्वीर
चांद सी दिखती थी तारों की जागीर।।
गज़ गामिन सी चाल थी
ओठ गुलाबी सी लाल थी।।
केशवों के भी अपने अंदाज़ थे
दरिया की लहरों से आगाज़ थे।।
पतली कमर बड़ी लचकदार थी
गोया सावन झूले की पेंग हर बार थी।।
वज़न जवानी का था बढ़ रहा
सूंदर काया का रंग था चढ़ रहा।।
कौमार्यता की खुमारी थी छायी
मानो घटाओं ने सूरज को है छुपायी।।
तन - बदन था महक रहा
जिसे पाने को दिल था तरस रहा।।
संदेह एक ही दिल में समायी थी
चाँद धरा पे कैसे उतर आयी थी।।
सफर जिंदगानी का यूं ही कटता नहीं
हमसफर हो कोई, असर पड़ता नहीं।।
नज़रे टिक गयी थी सूरत में
जो बदल रही थी प्यारी मूरत में।।
प्यार पटरी पर थी आ गयी
सूरत दिल में थी समा गयी।।
दिन में रूप का नज़ारा था
रात में ख्वाबों का सहारा था।।
मोहब्बत -ए-जिंदगी थी चलने लगी
उनकी यादों में थी शाम ढलने लगी।।
तभी वहां ज़हर भरी गाज़ एक आ गिरी
टूट गये सपने सभी तार-तार हुयी जिंदगी।।
महकती थी कलियां जिसके प्यार में
सूख गयी धरती, पानी के अभाव में।।
चाहा था मैंने जिसको टूट के
अब टूट जाऊंगा उनसे रूठ के।।
हर वक्त सताये ये गम
क्यूं टूट के चाहे थे हम।।
इन होंठों पे न मुस्कान आएगी
दवा न ही कोई दुवा काम आएगी।।
जो मचल उठती थीं नदियां बारिश के फुहार में
सूख गयीं है अब उनकी इन्तज़ार में।।
दिल को तड़पाती है असफल प्यार की तीखी चुभन
चांदनी में कैसे निहारते थे चाँद तारों का गगन।।
कहानी की दिल से शुरुआत है।।
देखी थी मैंने एक तस्वीर
चांद सी दिखती थी तारों की जागीर।।
गज़ गामिन सी चाल थी
ओठ गुलाबी सी लाल थी।।
केशवों के भी अपने अंदाज़ थे
दरिया की लहरों से आगाज़ थे।।
पतली कमर बड़ी लचकदार थी
गोया सावन झूले की पेंग हर बार थी।।
वज़न जवानी का था बढ़ रहा
सूंदर काया का रंग था चढ़ रहा।।
कौमार्यता की खुमारी थी छायी
मानो घटाओं ने सूरज को है छुपायी।।
तन - बदन था महक रहा
जिसे पाने को दिल था तरस रहा।।
संदेह एक ही दिल में समायी थी
चाँद धरा पे कैसे उतर आयी थी।।
सफर जिंदगानी का यूं ही कटता नहीं
हमसफर हो कोई, असर पड़ता नहीं।।
नज़रे टिक गयी थी सूरत में
जो बदल रही थी प्यारी मूरत में।।
प्यार पटरी पर थी आ गयी
सूरत दिल में थी समा गयी।।
दिन में रूप का नज़ारा था
रात में ख्वाबों का सहारा था।।
मोहब्बत -ए-जिंदगी थी चलने लगी
उनकी यादों में थी शाम ढलने लगी।।
तभी वहां ज़हर भरी गाज़ एक आ गिरी
टूट गये सपने सभी तार-तार हुयी जिंदगी।।
महकती थी कलियां जिसके प्यार में
सूख गयी धरती, पानी के अभाव में।।
चाहा था मैंने जिसको टूट के
अब टूट जाऊंगा उनसे रूठ के।।
हर वक्त सताये ये गम
क्यूं टूट के चाहे थे हम।।
इन होंठों पे न मुस्कान आएगी
दवा न ही कोई दुवा काम आएगी।।
जो मचल उठती थीं नदियां बारिश के फुहार में
सूख गयीं है अब उनकी इन्तज़ार में।।
दिल को तड़पाती है असफल प्यार की तीखी चुभन
चांदनी में कैसे निहारते थे चाँद तारों का गगन।।
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किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
जो अमृत है ओ ज़हर कैसे हो तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो। ख़्वाबों के अपने सलीक़े अलग हैं उजालों में इनका असर कैसे हो। इंसानियत प्रकृति की गोद में हो वहां कुदरत का कहर कैसे हो। घरों की पहचान बाप के नाम से हो वह जगह कोई शहर कैसे हो। पीने के योग्य भी न रह गया हो वह जल स्रोत कोई नहर कैसे हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल गया हो दिन हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।
उनका भी इक ख्वाब हैं।
उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

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