अश्क।।

गैर थे जो अश्क बनकर आंखों से बह गये
अपने तो आंखों में ही तड़प कर रह गये।।

इक गुज़ारिश थी कि दुबारा गम न आये
पुराने गम ही दिल में अब घर कर गये।।

मनहूस जिंदगी में न बहार आयी कभी
हम घूम -घूमकर पतझड़-ए-रेगिस्तान में रह गये।।

अज़ीब दास्तां है मोहब्बत-ए-जिंदगी की
मंजिल-ए-मोहब्बत को 'दरिया' तलाशते रह गये।।

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