चाहत थी कि रोंक लूँ उसे।।

चाहत थी कि रोंक लूँ उसे
पर तेवर ने झुकने न दिया।

जाना तो चाहती न थी
पर अहम ने रुकने न दिया।

एक ही दौलत थी मुस्कुराने की
बेबसी ने जिसे चुनने न दिया।

झूठी तारीफें तो खूब सुनी
सच को कानों ने सुनने न दिया।

कसर न रही तुझे भुलाने में
पर यादों ने मुझे उबरने न दिया।

तलाश थी जिस मंजिल की मुझे
उधर से किस्मत ने गुजरने न दिया।

हौंसले जब भी फ़ौलादी बने
अपनों ने मैदान में उतरने न दिया ।

बैठती तो थी आईने के सामने
बिरह ने कभी संवरने न दिया।

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