Posts
Showing posts from August, 2019
कुछ इस कदर हमने मोहब्बत का हिसाब लिख दी।
- Get link
- X
- Other Apps
तेरे खुलते अधरों पे गीत बंद अधरों पे प्रीत लिख दी बताऊँ क्या तुझे मैं सनम हारकर तुझे तेरी जीत लिख दी। तेरी खुली जुल्फों का बादल मटकते नयन की काज़ल लिख दी तेरी इक इक भंगिमाओं पर होते हृदय को पागल लिख दी। इक - इक शब्द पर तेरे हमने इक - इक किताब लिख दी कुछ इस कदर हमने मोहब्बत का हिसाब लिख दी। तेरी हिरनी की चाल उस पर गाल छूने का मलाल लिख दी मिलती नजरों पर होते अपने ख्यालों को हलाल लिख दी।
तुझ पे जां लुटाता रहूं।
- Get link
- X
- Other Apps
तू रोये चीखे और चिल्लाये मैं उसका आनंद उठता रहूं इतना भी हरजाई नहीं कि तुझ पे जां लुटाता रहूं। तू नाचे गाये और बजाये मैं उस पर तान लगाता रहूं कभी बजे जो पायल पाओं में मैं उस पर जां लुटाता रहूं। है तू तितली मन के मेरे सुबह - शाम रहती घेरे है नहीं दिन बचपन के डोरी बांध पूंछ में तेरे दिन भर मैं उड़ाता रहूं।
मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ।
- Get link
- X
- Other Apps
कर नहीं पाता सार्थक एक भी काम हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ सुरुआत बेहतर करता हूँ कि कुछ बेहतर हो जाये पर दिमाग के साथ ही करने लगता आराम हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ। जिंदगी भी पेपर हो गयी निकलते काम ही फाड़कर देता डाल कूड़ेदान हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ। बीएससी फिर एमएससी मए फिर आई टी आई शौकीन की पढ़ाई से लगाया डिग्रीयों का जाम हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ लगा दो दांव पर मोहब्बत-ए-जिंदगी अपनी छुड़ा कर हाथ महबूबा शिश्कते हुये कहती है चलूं तेरे साथ कैसे अपने घर का सम्मान हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ। रो रो के कहती है ओ जब चले भी आओ न घर अब सोंचता हूँ कि अब चला जाऊं पर अपने मालिक का गुलाम हूँ मैं कंफ्यूज़ डॉट कॉम हूँ। रामानुज 'दरिया'
घुड़की से डर जाऊं ऐसा मैं शायर नहीं हूँ।
- Get link
- X
- Other Apps
विनम्र हूँ कोमल हूँ पर कायर नहीं हूँ घुड़की से डर जाऊं ऐसा मैं शायर नहीं हूँ। सरल हूँ सहज़ हूँ पर लायर नहीं हूँ जो बोले, ओ लिखूँ ऐसा मैं शायर नहीं हूँ। सच को सच झूठ को झूठ लिखूँ तेरे गुलाबी लबों पर थिरकती सुबह की धूप लिखूँ तू जो चाहे सिर्फ़ ओ लिखूँ आशिक हूँ तेरा तेरे से हायर नहीं हूँ। रूठ जाऊं, छूट जाऊं तेरी बोलियों से टूट जाऊं समझ इतनी है, कि तू अपना है वर्ना आग का दरिया हूँ इक बूंद से बुझ जाऊं ऐसा मैं फायर नहीं हूँ। घुड़की से डर जाऊं ऐसा मैं शायर नहीं हूँ।
बेशक तुम तनहा रह जाओगी।
- Get link
- X
- Other Apps
गर इश्क़ किसी और से करोगी और नयन किसी और से मिलाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। सिखा कर पाठ मुहब्बत का छोड़ कर साथ चली जाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। खिला कर पान इश्क का लगा कर चूना चली जाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। पहन कर हार हीरों का गले किसी और को लगाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। पहन कर कपड़े अर्धनग्न गलत विचार को ठहराओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। वादा सात जन्मों का मोहब्बत में गहराई सात दिन में नपॉओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। मिला कर मन किसी और से गोलाई तन की नपाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। भुला कर कुर्बानियां माँ - बाप की धज़्ज़ियाँ इज़्ज़त की उड़ाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी। बना कर परी रक्खा था जिसने कभी उसी के लिये अभिशाप बन जाओगी बेशक तुम तनहा रह जाओगी।
कोयल कहती मैं भी। यादों के संग-संग ।
- Get link
- X
- Other Apps
ईंट - ईंट बजते हैं, पत्ती फूल बनकर आई है ऐसा लगता है ITI में कोई परी सी उतर आई है। ये तो साहब की अंगड़ाई है….….……............... अघ्यापक भी मुस्कुराते हैं बच्चे भी खिल - खिलाते हैं कर्मचारियों का तो क्या कहना इनकी क़िस्मत भी तो चमक आयी है। ये तो साहब की अंगड़ाई है.......….. बच्चे हैं सब समय से आते जूता मोजा भी पहन के आते सब तो अब हैं ड्रेस में आते बिल्ला भी खूब लटकाई है। ये तो साहब की अंगड़ाई है... पेंड़ पौधे हैं रंगे जाते ईंट पत्थर भी गंगा नहाते नालियों की बात न पूंछो इनकी भी तो खूब सफाई है। ये तो साहब की अंगड़ाई है.. अघ्यापक हैं सब समय से आते अनुशासन का पाठ सिखाते नौ बजे गेट बंद हो जाता फिर पांच ही बजे विदाई है। ये तो साहब की अंगड़ाई है..... गर इक दिन नहीं आते तो एप्लिकेशन हैं लाते गर हफ़्ते बीत गये तो मेडिकल के संग में आते महीनों की बात न पूंछो इसमें नामों की खूब कटाई है ये तो साहब की अंगड़ाई है......…......... अध्यापक क्या क्या गुर सिखाते भेली को हैं गुरु बनाते जब भी...
वक्त और मैं।
- Get link
- X
- Other Apps
वक्त और मैं कभी साथ न चल सका खेर और बेर कभी साथ न पल सका। जब वक्त था तो मैं नहीं अब मैं हूँ पर वक्त नहीं। मंजिल दिखी तो रास्ता न मिला रास्ता दिखा तो मंजिल न मिली। चलना चाहा तो पांव न मिले पांव मिले तो चल न सका । जिससे हाथ मिला उससे दिल न मिला जिससे दिल मिला उससे हाथ न मिला। जिसे पलकों पे बिठाया उसने कभी समझा नहीं जिसने समझा उसको कभी बिठा न सका। जब उम्र थी तब पायल नहीं अब पायल है पर उम्र नहीं। सजना थे तब सज न सके अब सजे तो सजना नहीं। जब नयन मिले तब काजल नहीं अब काजल है तो नयन नहीं। चमन थी तब बहार न आयी अब बहार आयी तो चमन नहीं। जब संग थी पत्नी तो सेज़ नहीं अब सेज़ है पर संग पत्नी नहीं। जिसका मैं हुआ ओ कभी मेरा नहीं जो मेरा हुआ उसका कभी में नहीं। शौक दुपट्टे का था तो जोबन नहीं अब जोबन है पर दुपट्टा नहीं। ओ आयी मिलने तब तक मैं पहुंचा नहीं पहुंचा भी मैं तब तक ।ओ चली गयी। जब भूख थी तब निवाला नहीं अब निवाला है पर भूख नहीं। जिंदगी थी तब कोई तारीफ़ नहीं अब तारीफ़ है पर जिंदगी नहीं। ...
सीमित प्रेम ( Limited Love)
- Get link
- X
- Other Apps
एक लड़का है जिसे लोग आशु के नाम से जानते हैं ,नाम से कम उसके काम से लोग ज्यादा जानते है।एक नाम आशी जिसकी अदाओं से लोग जानते है जो एक खूबसूरत type की लड़की है ।खूबसूरती की दुनिया मे जिसका बड़ा नाम है जिसके लिए लोग अपना हाथ पैर तक काट लेते हैं जिसके लिए खून से खत लिखे जाते हैं ,अब इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि ओ कितना खूबसूरत है।मजे की बात ये है कि दोनों एक ही संस्थान में पढ़ते हैं और खुशी की बात तो ये है कि दोनों एक ही धर्म को मानते हैं जिसे हिन्दू कहा जाता है,जाति दोनों की अलग है पर ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि दोनों बालिक और समझदार भी हैं। संस्थान खुलता है लोगो का आना-जाना शुरू होता है,सब अपने लिखाई पढ़ाई में ब्यस्त हो जाते हैं।मुलाकात आशु और आशी की भी होती है क्लास में क्योंकि क्लास में लोग आमने सामने बैठते हैं।चूंकि क्लास में सब नये नये रहते है इसलिए एक दूसरे के बारे में जानने की उत्सुकता बनी रहती है।अच्छा......जब मामला नया-नया रहता है तो हम इतने आतुर रहते लोगों को जानने समझने में कुछ पूंछो ही मत,खैर क्लास में मिलने-जुलने का सिल-सिला सुरु हो जाता है Actually आशु थोड़ा नटखट ...