वक्त और मैं।
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वक्त और मैं कभी साथ न चल सका
खेर और बेर कभी साथ न पल सका।
जब वक्त था तो मैं नहीं
अब मैं हूँ पर वक्त नहीं।
मंजिल दिखी तो रास्ता न मिला
रास्ता दिखा तो मंजिल न मिली।
चलना चाहा तो पांव न मिले
पांव मिले तो चल न सका ।
जिससे हाथ मिला उससे दिल न मिला
जिससे दिल मिला उससे हाथ न मिला।
जिसे पलकों पे बिठाया उसने कभी समझा नहीं
जिसने समझा उसको कभी बिठा न सका।
जब उम्र थी तब पायल नहीं
अब पायल है पर उम्र नहीं।
सजना थे तब सज न सके
अब सजे तो सजना नहीं।
जब नयन मिले तब काजल नहीं
अब काजल है तो नयन नहीं।
चमन थी तब बहार न आयी
अब बहार आयी तो चमन नहीं।
जब संग थी पत्नी तो सेज़ नहीं
अब सेज़ है पर संग पत्नी नहीं।
जिसका मैं हुआ ओ कभी मेरा नहीं
जो मेरा हुआ उसका कभी में नहीं।
शौक दुपट्टे का था तो जोबन नहीं
अब जोबन है पर दुपट्टा नहीं।
ओ आयी मिलने तब तक मैं पहुंचा नहीं
पहुंचा भी मैं तब तक ।ओ चली गयी।
जब भूख थी तब निवाला नहीं
अब निवाला है पर भूख नहीं।
जिंदगी थी तब कोई तारीफ़ नहीं
अब तारीफ़ है पर जिंदगी नहीं।
खेर और बेर कभी साथ न पल सका।
जब वक्त था तो मैं नहीं
अब मैं हूँ पर वक्त नहीं।
मंजिल दिखी तो रास्ता न मिला
रास्ता दिखा तो मंजिल न मिली।
चलना चाहा तो पांव न मिले
पांव मिले तो चल न सका ।
जिससे हाथ मिला उससे दिल न मिला
जिससे दिल मिला उससे हाथ न मिला।
जिसे पलकों पे बिठाया उसने कभी समझा नहीं
जिसने समझा उसको कभी बिठा न सका।
जब उम्र थी तब पायल नहीं
अब पायल है पर उम्र नहीं।
सजना थे तब सज न सके
अब सजे तो सजना नहीं।
जब नयन मिले तब काजल नहीं
अब काजल है तो नयन नहीं।
चमन थी तब बहार न आयी
अब बहार आयी तो चमन नहीं।
जब संग थी पत्नी तो सेज़ नहीं
अब सेज़ है पर संग पत्नी नहीं।
जिसका मैं हुआ ओ कभी मेरा नहीं
जो मेरा हुआ उसका कभी में नहीं।
शौक दुपट्टे का था तो जोबन नहीं
अब जोबन है पर दुपट्टा नहीं।
ओ आयी मिलने तब तक मैं पहुंचा नहीं
पहुंचा भी मैं तब तक ।ओ चली गयी।
जब भूख थी तब निवाला नहीं
अब निवाला है पर भूख नहीं।
जिंदगी थी तब कोई तारीफ़ नहीं
अब तारीफ़ है पर जिंदगी नहीं।
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किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
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उनका भी इक ख्वाब हैं।
उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

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