तुझ पे जां लुटाता रहूं।

तू रोये चीखे और चिल्लाये
मैं उसका आनंद उठता रहूं
इतना  भी   हरजाई   नहीं
कि तुझ पे जां लुटाता रहूं।

तू  नाचे  गाये  और  बजाये
मैं  उस पर तान लगाता रहूं
कभी बजे जो पायल पाओं में
मैं  उस  पर  जां लुटाता रहूं।

है  तू  तितली  मन  के  मेरे
सुबह  -  शाम  रहती  घेरे
है  नहीं  दिन  बचपन  के
डोरी  बांध  पूंछ   में   तेरे
दिन  भर  मैं  उड़ाता रहूं।

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