एक घटना जिसने देश को झकझोर का रख दिया था।
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ओडिशा के एक अस्पताल की ह्रदयविदारक घटना जिसमें दीनू मांझी नामक आदिवासी की पत्नीक tv के कारण मृत्यू हो जाती है और वह अपनी पत्नी को कंधों पर उठाकर चल देता है और 12 km तक जाता है,इसके बाद ही उसको एम्बुलेंस मुहैया करायी जाती है जो हमारे देश की अव्यवस्था का आईना पेश करती है।जिस घटना ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया।
ओ लाश नहीं आखिरी आस थी
लाचार व्यवस्था की जिंदा अहसास थी
मजबूत कंधे की ओ कहानी है
कांपते मेरे रूह की जवानी है
हर सख्स के लवों की आवाज़ है
सरेआम मरती इंसानियत आज है
बहुतों ने देखा बहुतों ने सोंचा होगा
हर किसी ने व्यवस्था को कोसा होगा
तस्वीर देख कर होंगे हम जिंदा नहीं
इस पर इंसानियत होती शर्मिंदा नहीं
फुट -फुट कर रोया किया कितना गिला होगा
जनाजा लेकर जब प्रियतम का चला होगा।
कितनी भयावह दुःखद रही ओ घड़ी होगी
जब शौहर के कंधे पर चली पगडंडी होगी।
यह तस्वीर क्या बताने के लिए काफी नहीं
कि हम ज़मीर बेंचने में करते न इंसाफी नहीं
आदि से अनन्त तक का वासी है
सच में दीनू एक आदिवासी है।
ओ लाश नहीं आखिरी आस थी
लाचार व्यवस्था की जिंदा अहसास थी
मजबूत कंधे की ओ कहानी है
कांपते मेरे रूह की जवानी है
हर सख्स के लवों की आवाज़ है
सरेआम मरती इंसानियत आज है
बहुतों ने देखा बहुतों ने सोंचा होगा
हर किसी ने व्यवस्था को कोसा होगा
तस्वीर देख कर होंगे हम जिंदा नहीं
इस पर इंसानियत होती शर्मिंदा नहीं
फुट -फुट कर रोया किया कितना गिला होगा
जनाजा लेकर जब प्रियतम का चला होगा।
कितनी भयावह दुःखद रही ओ घड़ी होगी
जब शौहर के कंधे पर चली पगडंडी होगी।
यह तस्वीर क्या बताने के लिए काफी नहीं
कि हम ज़मीर बेंचने में करते न इंसाफी नहीं
आदि से अनन्त तक का वासी है
सच में दीनू एक आदिवासी है।
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किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
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उनका भी इक ख्वाब हैं।
उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

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