नयना तुम्हारे।

टूट  कर  बिखरने   लगता हूँ
संभालते   हैं  कंगना  तुम्हारे
पी लून  मैं  कितना भी सनम
प्यास बुझाते हैं नयना तुम्हारे।

रूठ    कर  चल    देता     हूँ
बुला  लेते  हैं अरमां  तुम्हारे
गिर जांऊ किसी की नजर में
उठा  लेते   हैं  नयना   तुम्हारे।

सागर   की   बात  क्या  करूँ
'दरिया'  हैं   सावन  के सहारे
डूबी  नहीं   हैं  कस्तियां  वहां
जहां  केंवट  हों नयना तुम्हारे।

यूं  तो  भंवरे   होँसियार बहुत हैं
चूस लिए हैं रस यौवन के सारे
पर   बच   न सके आज तलक
तीर चलाये हों जब नयना तुम्हारे।

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