स्त्री जीवन।

                    Image google se

करवाया था फोन किसी से उसने,और यहां
गुमसुदगी की रिपोर्ट लिखी जा रही थी ।

ठीक से रो भी नही पा रही थी
हुये सितम की दास्तां सुना रही थी।

दो दिन तक होश नहीं आया था
जाने कैसे -कैसे उसको सताया था

दर्द संभालने की कोशिश कर रही थी
रो-रो के अपनी माँ से कह रही थी।

सास हाथ से ससुर लात से मारते हैं
मां पति देव तो हर बात पर मारते हैं।

तीन बेटी हुयी पर बेटा नहीं हुआ मां
इसी वजह से घरवाले धिक्कारते हैं।

कलमुंही, कर्मजली जाने कैसे-2 बुलाते हैं
कभी सिगरेट तो कभी चमटे से जलाते हैं।

लाठी डंडे भी उनको हल्के लगते हैं मां
जब मुँह पे बूट रख के मारने लगते हैं।

हाथ जोडूं कितना भी मैं गिड़गिडाऊं मां
कर निर्वस्त्र, ज़ख्म पर नमक रगड़ते हैं।

छोड़कर स्वार्थी दुनिया जा रही हूँ मां
आज मैं अपना वजूद मिटा रही हूँ।

क्या -क्या जतन नहीं किया मारने का
खाने में तो कभी पीने में जहर दिया मां

पता नहीं कैसे हर बार बचती रही मां
सांसों की डोर न इतनी सस्ती रही मां।

पर अब मैं और नहीं लड़ पाऊँगी
लकीरों को न हाथों से मिटा पाऊँगी।

लाडली बिटिया के साथ इंसाफ़ कर देंगे
मां, पापा से कहना मुझे माफ़ कर देंगे।

तीन भाई में जो बहन अकेली थी
जिंदगी बन कर रह गयी पहेली थी।
रामानुज 'दरिया'


Comments

Popular posts from this blog

किसी का टाइम पास मत बना देना।

तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।

उनका भी इक ख्वाब हैं।