हिंसाब होकर रहेगा।

उठी है कलम तो,
हिंसाब होकर रहेगा।
मिलेगी सुरक्षा वर्दी को
साथ वकीलों के ,
न्याय होकर रहेगा।
चीखता रहे जनमानस
भले ही ऑक्सीजन खातिर
प्रदूषण प्रकृति के साथ
अब पूर्णतयः होकर रहेगा।
लाल किले से दहाड़ने वाला शेर
भले ही मौन हो जाये,
बदली बन प्रदुषण धरा पे छा जाए
अंगारें उठती रहें,
भले ही वकीलों के हाहाकार से
भले दिल्ली वाला मफ़लर
गले मे ठिठुर कर रह जाये
लेकिन उठी है कलम तो,
हिसाब होकर रहेगा।
'दरिया'

Comments

Popular posts from this blog

किसी का टाइम पास मत बना देना।

तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।

उनका भी इक ख्वाब हैं।