असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

मुझे तो होश ही न रही।

जब पलकों के शिल शिले होते है साहब
तब होठ खुद ब खुद सिले होते हैं
सादगी की तो अपनी खासियत है साहब
बिन बोले हर किसी से मिले होते हैं।

हर बार खूबसूरती पे तो शायरी
मुमकिन नहीं साहब
पर बिन चांद-ए-दीदार के भी
शायरी मुमकिन नहीं साहब।

मयखानों की लत होगी
ओ और होंगे मेरे बाद
मुझे तो होश ही न रही
हुस्न- ए-दीदार के बाद।

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