यादों के संग - संग।

लट छितरे बिखरे से परे  हैं
जैसे सागर साहिल से लरे हैं
नाक पे पड़े हैं नथिया बनकर
बालों में सजे हैं गजरा बनकर
चंचल सी यह पवन चली है
जैसे दरिया खुशबू की बही है
कंचन सी यह देह तुम्हारी
केशु से अंग सजे सवंरे हैं
मोती से आज नहायी हुई हो
 य लिप्टिस के सारे फूल झरे हैं ।।
       "दरिया"

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