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Showing posts from July, 2020
इश्क कर लें हम दोंनो।
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अमावस्या की मिलन फिक्स कर लें हम दोनों चलो इक बार फिर से इश्क कर लें हम दोनों। अय्याशियों का शिल- शिला जारी रहे बस चलो एक साथ दो जिस्म कर लें हम दोंनों। मिलन की आरज़ू है बस संगमरमरी बदन की रेशमिया वाला फिर से किस कर लें हम दोनों। कटती तो है पर सदाबहार जैसी नहीं है जवानी को भी इसमें मिक्स कर लें हम दोनों। गुलाबी ओंठ, हंसी जिस्म और सुरमयी आंख आओ रात में ही आज सिक्स कर लें हम दोंनो।
तुम जीत गयी मुझसे।
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तुम जीत गयी मुझसे मन हर गया खुद से था तो बहुत कुछ कहना आवाज़ निकली न मुह से। तेरे लिए मन तड़पा आंखें रोयी बहुत दिल से रोशन तो बहुत सारा किया अंधेरा मिटा न अपने तल से बिखर गया आंगन अपना जब तू बढ़ गयी हद से प्रेम तो बस इबादत है खुद का फर्क नी, कितनी छोटी है कद से कोशिश करना तो कोई गुनाह नहीं जरूरी नहीं, मिट जाये बुराई जग से। हर कोई झुक जाये मेरे सामने छुई ऊंचाई इतनी नहीं कद से इक तरफ़ा न होती गर मोहब्बत यकीं मानो लिपट जाती तन से। हर साँस में आश छुपी है उसकी वर्ना निकल जाती मेरे बदन से। मैं उम्र भर राहें सजाता रहूंगा ओ तरसएगी मुझे हज़ारों जतन से। मैं बंज़र हो गया खुदा तेरे दिन के इस तपन से। देख आज सावन भी जा रहा है बिना उसकी एक मिलन से ओ बदसूरत न थी इतना जितना हो गयी औरों की जलन से। ये ज़र्रा ज़र्रा एक दिन कराहेगा उसकी बिछुड़न जैसी मिलन से।
कोई सपना न रहा/
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टूट कर बिखरा हूँ कि कोई सपना न रहा हो चुके सब पराये कोई अपना न रहा। छोड़ कर गांव शहर क्या आ गये किराये के जीवन में घर का अंगना न रहा। पर कटे परिंदे के उसे उड़ना न रहा नसीब बदली ऐसी कि हाथ का कंगना न रहा। करें क्या सिंदूर का जब सजना ही न रहा धुल गये श्रृंगार कि सजना न रहा। हया कराहने लगी बदन का नपना न रहा ओढ़ ली मजबूरी की चादर कोई रंक या रजना न रहा। "दरिया"
मेरे पास चली आना।
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सावन जब घिर - घिर आये और कोयल भी गीत सुनाये मेरे पास चली आना। तारे जब दीपक बन जायें और आँखे भी मोती बरसायें मेरे पास चली आना। केशव जब जब लहरायें अंगड़ाई बेकाबू हो जाये मेरे पास चली आना। पायल में झंकार आ जाये और होंट गुलाबी हो जायें मेरे पास चली आना। चेहरे पर रौनक आ जाये आंखे मधुशाला हो जायें मेरे पास चली आना। रातें जब उधार हो जायें दिन भी लाचार हो जाये मेरे पास चली आना। बिस्तर लड़ - लड़ जाये तकिया भी नींद चुराये मेरे पास चली आना। भले साल पचपन हो जाये याद बचपन की आ जाये मेरे पास चली आना।
तू रुलाएगा जरूर।
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मुझे मालूम था तू रुलाएगा जरूर हंसते - हंसते एक दिन जाएगा जरूर। धमक - गरज और लड़ना - झगड़ना मालूम था ये दिन आएगा जरूर। तिनका तिनका मिलाकर सजाया था जो नम आंखों से उसे छोड़ कर जायेगा जरूर। बारिश हो न हो घटा छायी रही मालूम था नीर तू बहायेगा जरूर। था करीब तू जरूरत से ज्यादा परछाई की तरह तू सताएगा जरूर। "दरिया"
आउंगी जरूर।
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उसने कहा है मैं आउंगी जरूर रौनक चेहरे की लौटाऊंगी जरूर। इस जनम में तड़प लो मेरे लिये अगले जनम तेरी हो जाऊंगी जरूर। तन से मैं हो गयी किसी और की भले मन से तेरी होकर आउंगी जरूर। छू न सकेगा तू जिस्म को मेरे पर रूह में तुझे बसाउंगी जरूर। देखा है ख्वाब जो तूने साथ मेरे अगले जनम में पूरा कराउंगी जरूर। रखी है शर्त जो मोहब्बत की तूने दो पल तेरे साथ बिताउंगी जरूर। भले चाहत है तुझे साथ अकेले की पर जी भर के तुझे मैं सताउंगी जरूर। "दरिया"