तुम जीत गयी मुझसे मन हर गया खुद से था तो बहुत कुछ कहना आवाज़ निकली न मुह से। तेरे लिए मन तड़पा आंखें रोयी बहुत दिल से रोशन तो बहुत सारा किया अंधेरा मिटा न अपने तल से बिखर गया आंगन अपना जब तू बढ़ गयी हद से प्रेम तो बस इबादत है खुद का फर्क नी, कितनी छोटी है कद से कोशिश करना तो कोई गुनाह नहीं जरूरी नहीं, मिट जाये बुराई जग से। हर कोई झुक जाये मेरे सामने छुई ऊंचाई इतनी नहीं कद से इक तरफ़ा न होती गर मोहब्बत यकीं मानो लिपट जाती तन से। हर साँस में आश छुपी है उसकी वर्ना निकल जाती मेरे बदन से। मैं उम्र भर राहें सजाता रहूंगा ओ तरसएगी मुझे हज़ारों जतन से। मैं बंज़र हो गया खुदा तेरे दिन के इस तपन से। देख आज सावन भी जा रहा है बिना उसकी एक मिलन से ओ बदसूरत न थी इतना जितना हो गयी औरों की जलन से। ये ज़र्रा ज़र्रा एक दिन कराहेगा उसकी बिछुड़न जैसी मिलन से।