असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

कोई सपना न रहा/



टूट कर बिखरा हूँ कि
कोई सपना न रहा
हो चुके सब पराये
कोई अपना न रहा।

छोड़ कर गांव
शहर क्या आ गये
किराये के जीवन में
घर का अंगना न रहा।

पर कटे परिंदे के
उसे उड़ना न रहा
नसीब बदली ऐसी कि 
हाथ का कंगना न रहा।

करें क्या सिंदूर का
जब सजना ही न रहा
धुल गये श्रृंगार कि
सजना न रहा।

हया कराहने लगी
बदन का नपना न रहा
ओढ़ ली मजबूरी की चादर
कोई रंक या रजना न रहा।

        "दरिया"

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