असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

चली गयी।


तू आकर ऐसे चली गयी
जिंदगी फिर से छली गयी

तड़पते जिस्म से जैसे
आज आत्मा चली गयी

सौदा इश्क का किया उसने
बाजार-ए-हुस्न में चली गयी

वजूद खुद का मिटाकर
दरिया नाल-ए- नदी गयी।

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