असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

रह पाये कौन।

 

मुश्किलों का बाजार इतना गरम हो

वहसी दुनिया में खुश रह पाये कौन।


सिस्टम ही भ्रष्टाचार की देन हो
ईमानदार बनकर रह पाये कौन

लगी हो लत नशे की गर "दरिया"
जली सिगरेट फिर बुझाये कौन।

परिणाम गर भयावह हो इश्क का
फिर नयना से नयन लड़ाये कौन।

हर लें हर बाधाओं को हरि भी
पर इतना जल उन्हें चढ़ाये कौन।

स्वार्थी होने का अपना अलग मजा है
तुझे निःस्वार्थ अब दूध पिलाये कौन।

खामोशी भी कांप जाती है मेरी
सन्नाटे से यहां उबर पाये कौन।

दिल लगाना भी तो गुनाह है जनाब
यही बात तुझे बार - बार बताये कौन।

तेरा आना और जाना दोंनो समान हो
फिर साथ रह कर स्वांग रचाये कौन।

मालूम हो तेरी चंचलता भरी हैवानियत
स्वर्ग सी जिंदगी जहन्नुम बनाये कौन।

जी चाहता है कि सिरहने सर रख दूं
वक्त को इतना जाया कर पाये कौन।

जरूरत नहीं तुझे मेरी तो कोई बात नि
हर बार अपना होने का अहसास कराये कौन।


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