रह पाये कौन।
- Get link
- X
- Other Apps
मुश्किलों का बाजार इतना गरम हो
वहसी दुनिया में खुश रह पाये कौन।
सिस्टम ही भ्रष्टाचार की देन हो
ईमानदार बनकर रह पाये कौन
लगी हो लत नशे की गर "दरिया"
जली सिगरेट फिर बुझाये कौन।
परिणाम गर भयावह हो इश्क का
फिर नयना से नयन लड़ाये कौन।
हर लें हर बाधाओं को हरि भी
पर इतना जल उन्हें चढ़ाये कौन।
स्वार्थी होने का अपना अलग मजा है
तुझे निःस्वार्थ अब दूध पिलाये कौन।
खामोशी भी कांप जाती है मेरी
सन्नाटे से यहां उबर पाये कौन।
दिल लगाना भी तो गुनाह है जनाब
यही बात तुझे बार - बार बताये कौन।
तेरा आना और जाना दोंनो समान हो
फिर साथ रह कर स्वांग रचाये कौन।
मालूम हो तेरी चंचलता भरी हैवानियत
स्वर्ग सी जिंदगी जहन्नुम बनाये कौन।
जी चाहता है कि सिरहने सर रख दूं
वक्त को इतना जाया कर पाये कौन।
जरूरत नहीं तुझे मेरी तो कोई बात नि
हर बार अपना होने का अहसास कराये कौन।
- Get link
- X
- Other Apps
Popular posts from this blog
किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
जो अमृत है ओ ज़हर कैसे हो तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो। ख़्वाबों के अपने सलीक़े अलग हैं उजालों में इनका असर कैसे हो। इंसानियत प्रकृति की गोद में हो वहां कुदरत का कहर कैसे हो। घरों की पहचान बाप के नाम से हो वह जगह कोई शहर कैसे हो। पीने के योग्य भी न रह गया हो वह जल स्रोत कोई नहर कैसे हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल गया हो दिन हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।
उनका भी इक ख्वाब हैं।
उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

Comments