ओ भी गुजर गयी पास से।

 आस जगी थी इक खास से

ओ भी गुजर गयी पास से।

जो भी आया सांत्वना दे गया
न रूबरू हुआ मेरे अहसास से।

भले न चल सके दो कदम साथ
पर मिली थी अंदाज़-ए-झकास से।

अभी चंद बातें ही तो हुयी थी उससे
चला गया मैं अपने होशोहवास से।

कल चाँद भी शर्मा गया शाम को
छत पर गयी थी ,अंदाज़-ए-खास से।

उसके सिवा न अब कोई दिल मे आये
धड़कनों में मिल जाये मेरी सांस से।

तब भी खाली था और आज भी
हो गये दिल-ए-अहसास बक़वास से।





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