क्यूँ ख़्वाब को ख्वाब रहने दिया जाये।



एक हौंसला और 'पर' को दिया जाये

क्यूँ ख़्वाब को ख्वाब रहने दिया जाये। 

रूख हवा का भी मोड़ सकती हो तुम
यूं जुल्फों को जो खुला रहने दिया जाये।

ठान लो, की ऊंचाइयां कमतर दिखेंगी
क्यू न सीढियां एक एक कर चढ़ा जाये।

तमाम उम्र निकल ही जाती है सोंचने में
क्यू न इसे कल पर छोड़ दिया जाये।

यकीं मानो चाँद राहें निहारेगा आपकी
क्यूं न तारों को आज समेट लिया जाये।

थक गये हो गर अपनों के लिये जीते-जीते
क्यूं न एक बार अपने लिये जिया जाये।

गर तसल्ली नहीं मिलती अपने कर्मों से
क्यूं न इक बार राहें बदल लिया जाये।

"दरिया"

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