असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

तिल – तिल मरने से तो अच्छा है/

 

          गज़ल

तिल – तिल मरने से तो अच्छा है

क्यूँ अभी तज देते अपने प्राण नहीं /


भरोसा नहीं रह गया गर बातों का

क्यूँ सीना चीर के दिखाते प्रमाण नहीं /


जब जमीर बेंच ही चुके हो दरिया

क्यूँ करते हर किसी को प्रणाम नहीं /


जब जयचंद ही जयचंद दिखने लगें

क्यूँ बनते तुम पृथ्वीराज चौहाण नहीं /


अब और लड़ा नहीं जाता खुद से खुदा

क्यूँ उठाते मेरे लिए धनुष बाण नहीं /

दरिया

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