असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

जब भी मिलो तुम।

जब भी तुम मिलो

रोम रोम शिहर जाये

गुजारिस इतनी है बस

ओ पल ही ठहर जाये।


जब भी तुम मिलो

दरिया में लहर आये

इस कदर भीगो तुम

नज़र तुम पे ठहर जाये।


जब भी मिलो तुम

जुल्फें तेरी लह-रा-यें

चाँद बादल और तुम

कहर और कहर ढायें।


जब भी मिलो तुम

मेरे गांव की नहर आये

दौड़े जो तितली को

दुपट्टा ढक चेहरे को जाये।


जब भी मिलो तुम

ऐसा मंजर हो जाये

भले नयन नीर बहाये

पर मन मंद-मंद मुस्काये।


जब भी मिलो तुम

मेरा मन शहर को जाये

सन्नाटा दार एक कमरा हो

और हम तर बतर हो जायें।


जब भी मिलो तुम

चेहरा चंदन हो जाये

आंखें हों मधुशाला

गुलाबी चुम्बन हो जाये।



 

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