मेरे गांव को तूने शहर कर दिया।


 रिश्तों  में  कैसा  जहर  भर  दिया

मेरे  गांव  को  तूने शहर कर दिया


चाँद - ए - दीदार  को मैं आतुर था

वक्त  ने  फिर से दोपहर कर दिया।


पसीने  छूट  रहे  हैं  बदल  के भी

जुल्फों  ने  ऐसा  कहर  कर दिया।


आँवांरगी  का  मज़ा  ही  अलग  है

ख़्वावों ने रेत का शहर कर दिया।


सरफिरे  शायरों  का  रहमों  करम है

जो गुलाबी ओंठ को नहर कर दिया।


रोंक  क्या  सकेंगी ज़माने की बंदिशें

भले  पहरा  सातों  पहर  कर  दिया।





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