जो जख्म तूने दिया ।


 

और  किस  क़दर  मैं तेरा साथ दूं

कहो,  कैसे  मैं  जिंदगी  काट  दूं।


ये  हालत  मेरी  उसी ने बनायी है

अब  इल्ज़ाम  मैं किसके माथ दूं।


जो  जख्म  तूने  दिया   है  सनम

अब  उसे  मैं  कहां  कहां  बांट दूं।


मेरी  खामोशियों  का  शोर हो तुम

उन  यादों  को  मैं  कहां  पाट  दूं।


न  देखा  था खुशबू-ए-ज़हर हमने

तेरे  दीदार  को  कौन  सा  नाम दूं।


जब  ठहराओ  नही  तुझमे दरिया

बहने  के  सिवा  कौन  सा  काम दूं।


छुड़ा  कर  हाथ जब तुम चली गयी

अब  किसे मैं मोहब्बत का हाथ दूं।


रख  लो  मेरे  हिस्से  की  खुशियां सारी

प्रेम से ज्यादा गम का कौन सा पाथ दूं।


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