असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया।




 गर हवाओं से इज़ाज़त लेनी पड़े

सम्माओं को जलाने के लिये

ताक पर रख दो जज़्बात अपने

रखो अहसासों को भी आग में जलाने के लिए


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

ख्वाबों में भी आने के लिये

सुलगा दो ये जिस्म भी अपना

उसकी यादों को जलाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

उसे मिलने बुलाने के लिये

तप्त कर दो धरा को भरपूर

जमीं से परिंदों को उड़ाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

उनसे बातें करने के लिये

जला कर राख कर दो उस पल को

जिसमे ख्याल आया हाले दिल सुनाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

हुस्न -ए- दीदार करने के लिये

बहा दो आँशुओं की दरिया

हुस्न को भी बहाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया को

कस्तियां डुबाने के लिये

तू रेत का ढेर हो जा दरिया

तरसे मल्लाह कस्तियां तैराने के लिये।

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