जिंदगी - ए- राह में क्या - क्या नहीं देखा।

 





जिंदगी - ए- राह में क्या - क्या  नहीं  देखा

रोती  खुशियां  और  विलखते  गम  देखा।


यूं  तो  बहारों  का  मौसम  खूब रहा मगर

अपने  हिस्से  में  इसका असर कम देखा।


छोड़  रही  थी   स्याह,   साथ   कलम  की

तभी  किस्मत  को  वहां  से  गुजरते  देखा।


हवा    की    तरह   उनको    गुजरते   देखा

फिर  उम्मीदों  को   अपने   बिखरते  देखा।


लत  लगी  थी  साहब  तो  लगी ही रह गयी

हमने  खामोशियों  को  दिल में उतरते देखा।





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