जब से 'जान' तेरा जाना हुआ।


जिस्म-ए-जान बेगाना हुआ।
जब से 'जान' तेरा जाना हुआ

चीख पड़े तकिया बिस्तर भी
जब से 'जान' तेरा जाना हुआ

छुप - छुप के रोती है छोटी भी
बड़ी का गायब मुस्कुराना हुआ

आंगन में मां सिसकती रही
बाप का गायब तराना हुआ।

चेहरा भाई की भी हवाई हुआ
अश्क-ए-पलक जमाना हुआ।

कली गली की भी सूख गयी
उजड़ा चमन स घराना हुआ।

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