आज सपने में गाँव देखा।।


आज सपने में गाँव देखा
गुजरा बचपन जहाँ से
पीपल की ओ छाँव देखा।

खेले थे जहाँ लुका- छिपि का खेल
चोर - पुलिस में हो जाती थी जेल
गोलू पिंटु भोलू के संग
पानी में चलाते, कागज़ की नाँव देखा।।
आज सपने में..........

फेल-पास की चर्चा रहती थी
गड्डी-तास की जहाँ सजती थी
बात-बात पर करते
कौओं की काँव-काँव देखा।
आज सपनें में.............

सिंकती रोटियां थी जिस पर
रख्खी चूल्हे पर ताव देखा
जिम्मेदारियों का बोझा लेकर
धूप में चलते पिताजी के पाँव देखा।।
आज सपने में................

                    रामानुज "दरिया"

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