मैंने जिंदगी को बहुत दूर से देखा है .







सपनों को होते चूर चूर देखा है
मैंने खुशियाँ को बहुत दूर से देखा है

माना की  मरहम की कमी नहीं 
पर जख्मों  को बनते नासूर देखा है

           रामानुज ‘दरिया’

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