किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

ये दौलत..................कुंवारी जगह से।


पढ़ न पाया मैं तुम्हारी वज़ह से
सताया है तूने मुझे कुंवारी जगह से।

हर इक नजरों से गिराया है तूने
अपनों से पराया बनाया है तूने

समय भी समय से हार गया
तेरी वज़ह से फीका हर त्योहार गया।

माँ भी मेरी उदास रहा करती थीं
हफ़्ते में व्रत दो चार किया करती थीं

अब ओ भी नाराज़ रहा करती हैं
छोड़ मुझको आंसुओं के साथ रहती हैं।

पर दुआएँ करती हैं हर समय हर जगह से
ये सब कुछ हुआ बस तुम्हारी वज़ह से।

बहन आती अब नइहर नहीं
बापू जाते अब शहर नहीं

रूठी बहन है भाई जान से
रूठ गया अनाज मेरे खलिहान से।
                रामानुज"दरिया"






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