असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

ये दौलत..................कुंवारी जगह से।


पढ़ न पाया मैं तुम्हारी वज़ह से
सताया है तूने मुझे कुंवारी जगह से।

हर इक नजरों से गिराया है तूने
अपनों से पराया बनाया है तूने

समय भी समय से हार गया
तेरी वज़ह से फीका हर त्योहार गया।

माँ भी मेरी उदास रहा करती थीं
हफ़्ते में व्रत दो चार किया करती थीं

अब ओ भी नाराज़ रहा करती हैं
छोड़ मुझको आंसुओं के साथ रहती हैं।

पर दुआएँ करती हैं हर समय हर जगह से
ये सब कुछ हुआ बस तुम्हारी वज़ह से।

बहन आती अब नइहर नहीं
बापू जाते अब शहर नहीं

रूठी बहन है भाई जान से
रूठ गया अनाज मेरे खलिहान से।
                रामानुज"दरिया"






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