काश सीखी हमने भी चमचागीरी होती
न    मुश्किलों  की  रात  अँधेरी  होती।
यूं   जाकर   ना  मैं   लौट    आता
गर  होता  हमारा  भी कोई गहरा नाता
पानी  की  मांग  पर  चाय  परोस  देता
ना  दिलों  को  उनके  जरा  खरोच देता
हर शब्द को उनके पलकों पे सजा लेता
खा कर गाली डांट जी भर के मजा लेता
काश इन कामों में दिखाई मैंने भी दिलेरी होती
न   मुश्किलों   की   रात   अँधेरी   होती।
" दरिया"

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